मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम
फ़ऊलुन--फ़ऊलुन--ऊलुन--फ़ऊलुन—
122------122------122-----122
अगर सोच में तेरी पाकीज़गी है
इबादत -सी तेरी मुहब्बत लगी है
मेरी बुतपरस्ती का जो नाम दे दो
मैं क़ाफ़िर नहीं ,वो मेरी बन्दगी है
कई बार गुज़रा हूँ तेरी गली से
कि हर बार बढ़ती गई तिश्नगी है
अभी नीमगुफ़्ता है रूदाद मेरी
अभी से मुझे नींद आने लगी है
उतर आओ दिल में तो रोशन हो दुनिया
तुम्हारी बिना पर ही ये ज़िन्दगी है
ये कुनबा,ये फ़िर्क़ा हमीं ने बनाया
कहीं रोशनी तो कहीं तीरगी है
मैं राह-ए-तलब का मुसाफ़िर हूँ ’आनन’
मेरी इन्तिहा मेरी दीवानगी है
-आनन्द पाठक-
[सं 30-06-19]
शब्दार्थ
पाकीज़गी = पवित्रता
बुत परस्ती = मूर्ति पूजा ,सौन्दर्य की उपासना
तिशनगी = प्यास
नीम गुफ़्ता रूदाद-=आधी अधूरी कहानी/किस्से ,अधूरे काम
तुम्हारी बिना पर = तुम्हारी ही बुनियाद पर
तीरगी =अँधेरा
राह-ए-तलब का मुसाफ़िर= प्रेम मार्ग का पथिक
4 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 30 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बेहतरीन शायरी लिखी आपने , बधाई
आनन्द जी आपकी ग़ज़ल वाकई बेहद ख़ूबसूरत है.....आपकी गजलों में उर्दू शब्दों का संकलन देखने को मिलता है....ऐसी ही गजलों व गीतों जैसे गीत क्या मैं गाऊं को आप शब्दनगरी के माध्यम से पढ़ सकतें है व अन्य रचनाओं, लेखों का भी आनंद प्राप्त कर सकतें हैं......
काबिले तारीफ़
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