बुधवार, 16 अगस्त 2017

गीत 64 : ---तो क्या हो गया !

                                               एक गीत : --------तो क्या हो गया


तेरी खुशियों में शामिल सभी लोग हैं ,एक मैं ही न शामिल तो क्या हो  गया !

ज़िन्दगी थी गुज़रनी ,गुज़र ही गई
 जो भी  बाक़ी बची है ,गुज़र जाएगी
दो क़दम साथ देकर चली छोड़ कर
ज़िन्दगी अब न जाने किधर जाएगी
तेरी यादों का मुझको सहारा बहुत ,एक तू ही न हासिल तो क्या हो गया !

किसको मिलती हैँ खुशियाँ यहाँ उम्र भर
कौन है जो मुहब्बत  में  रोया नहीं
मंज़िलें भी मिलीं तो उसी को मिलीं
आज तक राह में जो है सोया नहीं
चार दिन की मिली थी मुझे भी ख़ुशी,अब है टूटा हुआ दिल तो क्या हो गया !

तू जो   ढूँढे,   मिलेंगे    हज़ारों   तुझे
चाहने वालों की  कुछ कमी तो नहीं
कैसे समझी कि कल मैं बदल जाऊंगा
प्यार मेरा कोई मौसमी तो नहीं
तेरी नज़रों में क़ाबिल सभी लोग हैं ,एक मैं  ही न क़ाबिल तो क्या हो गया

मैने तुझ से कभी कुछ कहा ही नहीं
बात क्या हो गई  तू ख़फ़ा हो गई
बेरुखी ये तिरी और मुँह फेरना
अरे ! कुछ तो बता, क्या ख़ता हो गई

किसकी कश्ती है डूबी नहीं प्यार में,छू सका मैं  न साहिल ,तो क्या हो गया
तेरी खुशियों में शामिल सभी लोग हैं,एक मैं ही न शामिल तो क्या हो  गया

-आनन्द.पाठक-
[सं 30-05-18]


 

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