मुतफ़ाइलुन---मुतफ़ाइलुन---मुतफ़ाइलुन---मुतफ़ाइलुन
11212----------11212---------11212--------11212
बह्र-ए-कामिल मुसम्मन सालिम
-----------------------------------
एक ग़ज़ल : वो जो चढ़ रहा था----
वो जो चढ़ रहा था सुरूर था ,जो उतर रहा है ख़ुमार है
वो नवीद थी तेरे आने की , तेरे जाने की ये पुकार है
इधर आते आते रुके क़दम ,मेरा सर खुशी से है झुक गया
ये ज़रूर तेरा है आस्ताँ ,ये ज़रूर तेरा दयार है
न ख़ता हुई ,न सज़ा मिली , न मज़ा मिला कभी इश्क़ का
भला ये भी है कोई ज़िन्दगी ,न ही गुल यहाँ ,न ही ख़ार है
मेरी बेखुदी का ये हाल है ,दिल-ए-नातवाँ का पता नहीं
कि वो किस मकाँ का मक़ीन है , कि वो किस हसीं पे निसार है
ये जुनूँ नहीं तो है और क्या . तुझे आह ! इतनी समझ नहीं
ये लिबास है किसी और का ,ये लिबास तन का उधार है
ये ही आग ’आनन’-ए-बावफ़ा ,तेरी आशिक़ी की ही देन है
तेरी सांस है ,तेरी आस है , तेरी ज़िन्दगी की बहार है
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
नवीद = आने की शुभ सूचना
दिल-ए-नातवाँ = दुखी दिल
मक़ीन = निवासी/मकान मे रहने वाला
[सं 28-05-18]
11212----------11212---------11212--------11212
बह्र-ए-कामिल मुसम्मन सालिम
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एक ग़ज़ल : वो जो चढ़ रहा था----
वो जो चढ़ रहा था सुरूर था ,जो उतर रहा है ख़ुमार है
वो नवीद थी तेरे आने की , तेरे जाने की ये पुकार है
इधर आते आते रुके क़दम ,मेरा सर खुशी से है झुक गया
ये ज़रूर तेरा है आस्ताँ ,ये ज़रूर तेरा दयार है
न ख़ता हुई ,न सज़ा मिली , न मज़ा मिला कभी इश्क़ का
भला ये भी है कोई ज़िन्दगी ,न ही गुल यहाँ ,न ही ख़ार है
मेरी बेखुदी का ये हाल है ,दिल-ए-नातवाँ का पता नहीं
कि वो किस मकाँ का मक़ीन है , कि वो किस हसीं पे निसार है
ये जुनूँ नहीं तो है और क्या . तुझे आह ! इतनी समझ नहीं
ये लिबास है किसी और का ,ये लिबास तन का उधार है
ये ही आग ’आनन’-ए-बावफ़ा ,तेरी आशिक़ी की ही देन है
तेरी सांस है ,तेरी आस है , तेरी ज़िन्दगी की बहार है
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
नवीद = आने की शुभ सूचना
दिल-ए-नातवाँ = दुखी दिल
मक़ीन = निवासी/मकान मे रहने वाला
[सं 28-05-18]
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