फ़’लुन--फ़े’लुन---फ़े’लुन --फ़े’लुन
122---122------122----122
बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम
-------------------
ग़ज़ल 145 : लगे दाग़ दामन पे--
लगे दाग़ दामन पे , जाओगी कैसे ?
बहाने भी क्या क्या ,बनाओगी कैसे ?
चिराग़-ए-मुहब्बत बुझा तो रही हो
मगर याद मेरी मिटाओगी कैसे ?
शराइत हज़ारों यहाँ ज़िन्दगी के
भला तुम अकेले निभाओगी कैसे ?
नहीं जो करोगी किसी पर भरोसा
तो अपनो को अपना बनाओगी कैसे ?
रह-ए-इश्क़ मैं सैकड़ों पेंच-ओ-ख़म है
गिरोगी तो ख़ुद को उठाओगी कैसे ?
कहीं हुस्न से इश्क़ टकरा गया तो
नज़र से नज़र फिर मिलाओगी कैसे ?
कभी छुप के रोना ,कभी छुप के हँसना
ज़माने से कब तक छुपाओगी कैसे ?
अगर पास में हो न ’आनन’ तुम्हारे
तो शाने पे सर को टिकाओगी कैसे ?
-आनन्द.पाठक-
122---122------122----122
बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम
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ग़ज़ल 145 : लगे दाग़ दामन पे--
लगे दाग़ दामन पे , जाओगी कैसे ?
बहाने भी क्या क्या ,बनाओगी कैसे ?
चिराग़-ए-मुहब्बत बुझा तो रही हो
मगर याद मेरी मिटाओगी कैसे ?
शराइत हज़ारों यहाँ ज़िन्दगी के
भला तुम अकेले निभाओगी कैसे ?
नहीं जो करोगी किसी पर भरोसा
तो अपनो को अपना बनाओगी कैसे ?
रह-ए-इश्क़ मैं सैकड़ों पेंच-ओ-ख़म है
गिरोगी तो ख़ुद को उठाओगी कैसे ?
कहीं हुस्न से इश्क़ टकरा गया तो
नज़र से नज़र फिर मिलाओगी कैसे ?
कभी छुप के रोना ,कभी छुप के हँसना
ज़माने से कब तक छुपाओगी कैसे ?
अगर पास में हो न ’आनन’ तुम्हारे
तो शाने पे सर को टिकाओगी कैसे ?
-आनन्द.पाठक-
3 टिप्पणियां:
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )
12 मार्च २०२० को साप्ताहिक अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
नहीं जो करोगी किसी पर भरोसा
तो अपनो को अपना बनाओगी कैसे ?
रह-ए-इश्क़ मैं सैकड़ों पेंच-ओ-ख़म है
गिरोगी तो ख़ुद को उठाओगी कैसे ?
भावपूर्ण शेरों से सजी रचना
हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
AAP SABHI KA BAHUT BAHUT DHANYAVAAD---SAADAR
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