बह्र-ए-मुज़ारे’ मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु---्फ़ाअ’लातु---मफ़ाईलु-- फ़ाअ’लुन
221---------2121---------1221-------2 1 2
एक ग़ज़ल : क़ातिल के हक़ में ---
क़ातिल के हक़ में लोग रिहाई में आ गए
अंधे भी चश्मदीद गवाही में आ गए
तिनका छुपा हुआ है जो दाढ़ी में आप के
पूछे बिना ही आप सफ़ाई मे आ गए
कुर्सी का ये असर है कि जादूगरी कहें
जो राहज़न थे राहनुमाई में आ गए
अच्छे दिनों के ख़्वाब थे आँखों में पल रहे
आई वबा तो दौर-ए- तबाही में आ गए
मुट्ठी में इन्क़लाब था सीने में जोश था
वो सल्तनत की पुश्तपनाही में आ गए
बस्ती जला के सेंक सियासत की रोटियाँ
मरहम लिए वो रस्म निबाही में आ गए
ऐ राहबर ! क्या ख़ाक तेरी रहबरी यही
हम रोशनी में थे कि सियाही में आ गए
’आनन’ तू खुशनसीब है पगड़ी तो सर पे है
वरना तो लोग बेच कमाई में आ गए
-आनन्द.पाठक-
वबा = महामरी
पुश्तपनाही = पॄष्ठ-पोषण,हिमायत
सियाही में = अँधेरे में
मरहम = मलहम
मफ़ऊलु---्फ़ाअ’लातु---मफ़ाईलु-- फ़ाअ’लुन
221---------2121---------1221-------2 1 2
एक ग़ज़ल : क़ातिल के हक़ में ---
क़ातिल के हक़ में लोग रिहाई में आ गए
अंधे भी चश्मदीद गवाही में आ गए
तिनका छुपा हुआ है जो दाढ़ी में आप के
पूछे बिना ही आप सफ़ाई मे आ गए
कुर्सी का ये असर है कि जादूगरी कहें
जो राहज़न थे राहनुमाई में आ गए
अच्छे दिनों के ख़्वाब थे आँखों में पल रहे
आई वबा तो दौर-ए- तबाही में आ गए
मुट्ठी में इन्क़लाब था सीने में जोश था
वो सल्तनत की पुश्तपनाही में आ गए
बस्ती जला के सेंक सियासत की रोटियाँ
मरहम लिए वो रस्म निबाही में आ गए
ऐ राहबर ! क्या ख़ाक तेरी रहबरी यही
हम रोशनी में थे कि सियाही में आ गए
’आनन’ तू खुशनसीब है पगड़ी तो सर पे है
वरना तो लोग बेच कमाई में आ गए
-आनन्द.पाठक-
वबा = महामरी
पुश्तपनाही = पॄष्ठ-पोषण,हिमायत
सियाही में = अँधेरे में
मरहम = मलहम
1 टिप्पणी:
अच्छे दिनों के ख़्वाब थे आँखों में पल रहे
आई वबा तो दौर-ए- तबाही में आ गए
बहुत खूब ...,
बेहतरीन ग़ज़ल ।
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