अनुभूतियाँ 004 ok
क़तरा क़तरा दर्द हमारा,
हर क़तरे में एक कहानी ।
शामिल है इसमे दुनिया की
मिलन-विरह की कथा पुरानी ।
014
छोड़ गई हो जब से मुझ को
सूना दिल का कोना
कोना ।
कब तक साथ भला तुम देती
आज नहीं तो कल था होना ।
015
इतना जुल्म न ढाओ मुझ पर
प्रणय-गीत फिर गा न सकूँगा ।
लाख करोगी कोशिश तो भी,
आना चाहूँ , आ न सकूँगा ।
016
फूल-गन्ध का रिश्ता क्या है ?
कभी नहीं यह जाना तुमने ।
जीवन भर का साथ हमारा
लेकिन कब यह माना तुमने।
-आनन्द.पाठक-
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