शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

अनुभूतियाँ : क़िस्त 004

 

अनुभूतियाँ 004 ok

 

 013

क़तरा क़तरा दर्द हमारा,

हर क़तरे में एक कहानी ।

शामिल है इसमे दुनिया की

मिलन-विरह की कथा पुरानी ।

  

014

छोड़ गई हो जब से मुझ को

सूना दिल का  कोना कोना ।

कब तक साथ भला तुम देती

आज नहीं तो कल था होना ।

 

015

इतना जुल्म न ढाओ मुझ पर

प्रणय-गीत फिर गा न सकूँगा ।

लाख करोगी कोशिश तो भी,

आना चाहूँ , आ न सकूँगा ।

  

016

फूल-गन्ध का रिश्ता क्या है ?

 कभी नहीं यह जाना तुमने 

जीवन भर का साथ  हमारा

लेकिन कब यह माना तुमने।

  

-आनन्द.पाठक-

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