शनिवार, 2 जुलाई 2022

ग़ज़ल 242(07E) : कटी उम्र उनको बुलाते बुलाते

 ग़ज़ल 242 [07E]


122---122---122---122


कटी उम्र उनको बुलाते बुलाते

जमाना लगेगा उन्हें आते आते


न जाने झिझक कौन सी उनके मन में

इधर आते आते, ठहर क्यों हैं जाते ?


हक़ीक़त है क्या? यह पता चल तो जाता

कभी अपने रुख से वो परदा हटाते


अँधेरों में तुमको नई राह दिखती

चिराग़-ए-मुहब्बत अगर तुम जलाते


परिंदो की क्या ख़ुशनुमा ज़िंदगी है

जहाँ दिल किया जब वहीं उड़ के जाते


ख़िलौना था कच्चा इसे टूटना था

नई बात क्या थी कि आँसू बहाते


ये माना कि दुनिया फ़रेबी है ’आनन’

इसी में है रहना, कहाँ और जाते 


-आनन्द.पाठक-


2 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

ख़िलौना था कच्चा इसे टूटना था
नई बात क्या थी कि आँसू बहाते

आनन्द पाठक ने कहा…

धन्यवाद आप का ्काविता जी --सादर