1212--1122--1212--22
तलाश जिसकी थी वो तो नहीं मिला,फिर भी
उसी की याद में ये दिल है मुब्तिला फिर भी
हज़ार तौर तरीक़ों से आज़माता है
क़रीब आ के वो रखता है फ़ासिला फिर भ
अभी तो आदमी, इन्सान बन नहीं पाया
अज़ल से चल रहा पैहम ये काफ़िला फिर भी
चिराग़ लाख बुझाओ, न रुक सकेगा ये
नए चिराग़ जलाने का सिलसिला फिर भी
लबों की प्यास अभी तक नहीं बुझी साक़ी
पिला चुका है बहुत और ला पिला फिर भी
गया वो छोड़ के जब से ,चमन है वीराना
जतन हज़ार किए दिल नहीं खिला फिर भी
बहुत सही हैं ज़माने की तलखियाँ "आनन’
हमारे दिल में किसी से नहीं गिला फिर भी
शब्दार्थ
मुब्तिला = ग्रस्त
अज़ल = अनादि काल
पैहम = निरन्तर ,लगातार
तल्ख़ियां = कटु अनुभव
-आनन्द.पाठक-
[सं 30-06-19]
5 टिप्पणियां:
बे -मिसाल शैर कहे हैं दर्शन कह दिया है आशावाद का यथार्थ का :
अभी तो आदमी, इन्सान बन नहीं पाया
अज़ल से चल रहा पैहम ये काफ़िला फिर भी
चिराग़ लाख बुझाओ, न रुक सकेगा ये
नए चिराग़ जलाने का सिलसिला फिर भी
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
वाह ...बेहतरीन गजल
मेरे ब्लॉग पर आप आमंत्रित हैं :)
Umda lajawaab gazal waah!
आ0 वीरेन्द्र जी/ओंकार जी/रोहितास जी और परी साहिबा
आदाब
आप सभी लोगों का तह-ए-दिल से शुक्रिया
मम्नून-ओ-शुक्रगुज़ार हूँ
-आनन्द.पाठक-
एक टिप्पणी भेजें