चन्द माहिया : क़िस्त 58
:1:
सदचाक हुआ दामन
तेरी उलफ़त में
बरबाद हुआ ’आनन’
:2:
क्यों रूठी हो ,हमदम
कैसे मनाना है
कुछ मुझ को सिखा जानम
:3:
दिल ले ही लिया तुमने
जाँ भी ले लेते
क्यों छोड़ दिया तुमने ?
:4:
लहरा के न चल पगली
दिल पे रह रह के
गिर जाती है बिजली
:5:
क्या पाना क्या खोना
जब से गए हो तुम
दिल का खाली कोना
-आनन्द.पाठक--
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