221---2122 //221--2122
ग़ज़ल [26 A ] : दुनिया से जब चलूँ मैं--
दुनिया से जब चलूँ मैं ,पीड़ा मेरी घनी हो=
इक हाथ पुस्तिका हो .इक हाथ लेखनी हो
सूली पे रोज़ चढ़ कर ,ज़िन्दा रहा हूँ कैसे
आएँ कभी जो घर पर,यह रीति सीखनी हो
हर दौर में रही है ,सच-झूठ की लड़ाई
तुम ’सच’ का साथ देना,जब झूठ से ठनी हो
बेचैनियाँ हों दिल में ,दुनिया के हों मसाइल
याँ मैकदे में आना .खुद से न जब बनी हो
नफ़रत से क्या मिला है, बस तीरगी मिली है
दिल में हो प्यार सबसे , राहों में रोशनी हो
चाहत यही रहेगी ,घर घर में हो दिवाली
जुल्मत न हो कहीं पर ,न अपनों से दुश्मनी हो
माना कि है फ़क़ीरी ,फिर भी बहुत है दिल में
’आनन’ से बाँट लेना , उल्फ़त जो बाँटनी हो
-आनन्द.पाठक-
ग़ज़ल [26 A ] : दुनिया से जब चलूँ मैं--
दुनिया से जब चलूँ मैं ,पीड़ा मेरी घनी हो=
इक हाथ पुस्तिका हो .इक हाथ लेखनी हो
सूली पे रोज़ चढ़ कर ,ज़िन्दा रहा हूँ कैसे
आएँ कभी जो घर पर,यह रीति सीखनी हो
हर दौर में रही है ,सच-झूठ की लड़ाई
तुम ’सच’ का साथ देना,जब झूठ से ठनी हो
बेचैनियाँ हों दिल में ,दुनिया के हों मसाइल
याँ मैकदे में आना .खुद से न जब बनी हो
नफ़रत से क्या मिला है, बस तीरगी मिली है
दिल में हो प्यार सबसे , राहों में रोशनी हो
चाहत यही रहेगी ,घर घर में हो दिवाली
जुल्मत न हो कहीं पर ,न अपनों से दुश्मनी हो
माना कि है फ़क़ीरी ,फिर भी बहुत है दिल में
’आनन’ से बाँट लेना , उल्फ़त जो बाँटनी हो
-आनन्द.पाठक-
1 टिप्पणी:
बहुत अच्छा लिखा है आपने
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