चन्द माहिया : क़िस्त 59
:1:
सब क़स्में खाते हैं
कौन निभाता है
कहने की बाते हैं
:2:
क्या हुस्न निखारा है
जब से डूबा मन
उबरा न दुबारा है
:3:
इतना न सता माहिया
क्या थी ख़ता मेरी
इतना तो बता माहिया
:4:
बेदाग़ चुनरिया में
दाग़ लगा बैठे
आकर इस दुनिया में
:5:
क्या दर्द बताना है
एक तेरा ग़म है
इक दर्द-ए-जमाना है
-आनन्द.पाठक-
:1:
सब क़स्में खाते हैं
कौन निभाता है
कहने की बाते हैं
:2:
क्या हुस्न निखारा है
जब से डूबा मन
उबरा न दुबारा है
:3:
इतना न सता माहिया
क्या थी ख़ता मेरी
इतना तो बता माहिया
:4:
बेदाग़ चुनरिया में
दाग़ लगा बैठे
आकर इस दुनिया में
:5:
क्या दर्द बताना है
एक तेरा ग़म है
इक दर्द-ए-जमाना है
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