ग़ज़ल 122[50 A]
2122--1212---22
हुस्न हर उम्र में जवाँ देखा
इश्क़ हर मोड़ पे अयाँ देखा
एक चेहरा जो दिल में उतरा है
वो ही दिखता रहा जहाँ देखा
इश्क़ तो शै नहीं तिजारत की
आप ने क्यों नफ़ा ज़ियाँ देखा ?
और क्या देखना रहा बाक़ी
तेरी आँखों में दो जहाँ देखा
बज़्म में थे सभी ,मगर किसने
दिल का उठता हुआ धुआँ देखा ?
हुस्न वालों की बेरुख़ी देखी
इश्क़ वालों को लामकां देखा
सर ब सजदा हुआ वहीं’आनन’
दूर से उनका आस्ताँ देखा
-आनन्द पाठक-
हुस्न हर उम्र में जवाँ देखा
इश्क़ हर मोड़ पे अयाँ देखा
एक चेहरा जो दिल में उतरा है
वो ही दिखता रहा जहाँ देखा
इश्क़ तो शै नहीं तिजारत की
आप ने क्यों नफ़ा ज़ियाँ देखा ?
और क्या देखना रहा बाक़ी
तेरी आँखों में दो जहाँ देखा
बज़्म में थे सभी ,मगर किसने
दिल का उठता हुआ धुआँ देखा ?
हुस्न वालों की बेरुख़ी देखी
इश्क़ वालों को लामकां देखा
सर ब सजदा हुआ वहीं’आनन’
दूर से उनका आस्ताँ देखा
-आनन्द पाठक-
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