चन्द माहिया : क़िस्त 60
:1:
इक ख़्वाब-ए-जन्नत में
डूबा है ज़ाहिद
हूरों की जीनत में
:2:
ये हुस्न की रानाई
नाज़,अदा फिर क्या
गर हो न पजीराई
:3:
ग़ैरों की बातों को
मान लिया सच क्यों
सब झूठी बातों को
:4:
इतना ही फ़साना है
फ़ानी दुनिया मे
बस आना-जाना है
:5:
तुम कहती, हम सुनते
बीत गए वो दिन
थे साथ सपन बुनते
-आनन्द.पाठक-
:1:
इक ख़्वाब-ए-जन्नत में
डूबा है ज़ाहिद
हूरों की जीनत में
:2:
ये हुस्न की रानाई
नाज़,अदा फिर क्या
गर हो न पजीराई
:3:
ग़ैरों की बातों को
मान लिया सच क्यों
सब झूठी बातों को
:4:
इतना ही फ़साना है
फ़ानी दुनिया मे
बस आना-जाना है
:5:
तुम कहती, हम सुनते
बीत गए वो दिन
थे साथ सपन बुनते
-आनन्द.पाठक-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें