सोमवार, 10 अगस्त 2020

गीत 66 : एक प्रणय गीत --खोल कर यूँ न ज़ुल्फ़ें --

एक प्रणय गीत --

खोल कर यूँ न ज़ुल्फ़ें चलो बाग़ में
प्यार से है भरा दिल,छलक जाएगा

ये लचकती महकती हुई डालियाँ
झुक के करती हैं तुमको नमन, राह में
हाथ बाँधे हुए सब खड़े फ़ूल  हैं
बस तुम्हारे ही दीदार  की  चाह में

यूँ न लिपटा करों शाख़  से पेड़  से
मूक हैं भी तो क्या ? दिल धड़क जायेगा

एक मादक बदन और उन्मुक्त मन
बेख़ुदी में क़दम लड़खड़ाते हुए
एक यौवन छलकता चला  आ रहा
होश फूलों का कोई उड़ाते हुए

यूँ न इतरा के बल खा चला तुम करो
ज़र्रा ज़र्रा चमन का  महक जाएगा

आसमाँ से उतर कर ये कौन आ गया ?
हूर जन्नत की या अप्सरा या परी  ?
हर लता ,हर कली ,फ़ूल पूछा किए
यह हक़ीक़त है या रब की जादूगरी ?

देख ले जो कोई मद भरे दो नयन
बिन पिए ही यक़ीनन बहक जाएगा

  तुमको देखा तो ऐसा लगा क्यों मुझे
ज़िन्दगी आज अपनी सफल हो गई
मन खिला जो तुम्हारा कमल हो गया
और ख़ुशबू बदन की ग़ज़ल हो गई

लाख कोशिश करूँ पर रुकेगा नहीं
दिल है मासूम मेरा भटक जाएगा ।

खोल कर यूँ न ज़ुल्फ़ें चलो बाग़ में ,-प्यार से  दिल भरा है ---

-आनन्द,पाठक--