शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

अनुभूतियाँ : क़िस्त 002


 अनुभूतियाँ 002 ok


005

 क्यों याद करूँउस दुनिया को ,

जिस दुनिया ने  छोड़ा मुझको,

दिल से जुड़ने की चाहत थी,

बस अपनो ने तोड़ा मुझको। 


006

मैं फूल बिछाता रहा इधर,

वो काँटों  पर काँटे बोए,

 जब मै रोया तनहाई  में

ये दुनिया वाले कब रोए ?


007

फूलों की अपनी मर्यादा 

गुलशन में रहना होता है,

तूफ़ाँ, बिजली, झंझावातें

फूलों को सहना होता है।


008

दुनिया ने जब समझा ही नहीं

 मै और अधिक क्या समझाता

क्या और सफ़ाई मैं देता,

 दुनिया को क्या क्या बतलाता।


-आनन्द.पाठक-


इन अनुभूतियॊं को आप यहाँ सुन सकते हैं

https://youtu.be/CR04_kyQCpQ







1 टिप्पणी:

कविता रावत ने कहा…

अपना दुखड़ा खुद ही झेलना होता है अकेले-अकेले

बहुत अच्छी प्रस्तुति