शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

अनुभूतियाँ : क़िस्त 02

 अनुभूतियाँ 02


01

 क्यों याद करूँउस दुनिया को ,

जिस दुनिया ने  छोड़ा मुझको,

दिल से जुड़ने की चाहत थी,

बस अपनो ने तोड़ा मुझको। 


02

मैं फूल बिछाता रहा इधर,

वो काँटों  पर काँटे बोए,

 जब मै रोया तनहाई  में

ये दुनिया वाले कब रोए ?


03

फूलों की अपनी मर्यादा 

गुलशन में रहना होता है,

तूफ़ाँ, बिजली, झंझावातें

फूलों को सहना होता है।


04

लोगो ने जब समझा ही नहीं

 क्या और अधिक मैं समझाता,

क्या और सफ़ाई मैं देता,

 दुनिया को क्या क्या बतलाता।


-आनन्द.पाठक-


1 टिप्पणी:

कविता रावत ने कहा…

अपना दुखड़ा खुद ही झेलना होता है अकेले-अकेले

बहुत अच्छी प्रस्तुति