अनुभूतियाँ 003 OK
009
रिश्ते-नाते, प्रेम, लगन सब
कुछ शब्द बचे , निष्प्राण हुए
जाने क्यों ऎसा लगता है
सब मतलब के उपमान हुए
010
मेरी कुटिया राजमहल है
दुनिया से क्या लेना देना,
तुम्हें मुबारक सोना चाँदी
मुझे बहुत है चना चबेना
011
कतरा क़तरा आँसू मेरे
जीवन के मकरन्द बनेंगे
सागर से भी गहरे होंगे
पीड़ा से जब छन्द बनेंगे
012
सबके अपने अपने सपने
सब के अपने अपने ग़म हैं
तुम ही एक नहीं दुनिया में
आँखें रहती जिसकी नम हैं
-आनन्द.पाठक-
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