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फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़ाइलुन
बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम
ग़ज़ल 173
पास मेरे था उसका पता उम्र भर
लाख ढूँढा उसे ,ना मिला उम्र भर
बारहा वह मिला मैने देखा नहीं
बीच में थी खड़ी इक अना उम्र भर
आप से क्या मिले इक घड़ी दो घड़ी
ख़ुद से ख़ुद ही रहा मैं जुदा उम्र भर
क्या ग़लत, क्या सही, क्या गुनह, क्या सवाब
मन इसी में उलझता गया उम्र भर
ज़ाहिरी तौर पर हों भले हम सुखन
आदमी आदमी से डरा उम्र भर
पास आया भी वह , मुस्कराया भी वह
पर बनाए रहा, फ़ासिला उम्र भर
छोड़ कर वह गया जब से ’आनन’ मुझे
फिर न कोई मिला दूसरा उम्र भर
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
अना = अहम ,अहंकार
गुनह ,सवाब = पाप पुण्य
हमसुखन = बात करने वाले दोस्त
2 टिप्पणियां:
बारहा वह मिला मैने देखा नहीं
बीच में थी खड़ी इक अना उम्र भर।
ये अना ही तो है जो हमेशा आगे बढ़ने से रोकती है और रिश्ते दम तोड़ देते हैं।
बेहतरीन ग़ज़ल
जी धन्यवाद आप का
सादर
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