अनुभूतियाँ : क़िस्त 008 ओके
029
दोनों के जब दर्द एक हैं,
फिर दिल की दिल से क्यों दूरी
एक साथ चलने में क्या है ,
मिलने में हैं क्या मजबूरी ?
030
पूरी रात सितारे जग कर ,
देखा करते राह निरन्तर ?
और जलाते रहते ख़ुद को
आग बची जो दिल के अन्दर ।
031
कितनी बार हुई नम आँखें,
लेकिन बहने दिया न मैने।
शब्द अधर पर जब तब उभरे
लेकिन कहने दिया न मैने ।
032
छोड़ गई तुम, अरसा बीता,
फिर न बहार आई उपवन में ।
लेकिन ख़ुशबू आज तलक है,
दिल के इस सूने आँगन में ।
-आनन्द.पाठक-
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