शनिवार, 19 जून 2021

अनुभूतियाँ : क़िस्त 008

 

अनुभूतियाँ : क़िस्त  008 ओके

 

029

दोनों के जब दर्द एक हैं,

फिर दिल की दिल से क्यों दूरी

एक साथ चलने में क्या है ,

मिलने में हैं क्या मजबूरी ?

 

030

पूरी रात सितारे जग कर ,

देखा करते  राह निरन्तर  ?

और जलाते रहते ख़ुद को

आग बची जो दिल के अन्दर ।

 

031

कितनी बार हुई नम आँखें,

लेकिन बहने दिया न मैने।

शब्द अधर पर जब तब उभरे 

लेकिन कहने दिया न मैने ।

 

032

छोड़ गई तुम, अरसा बीता,

फिर न बहार आई उपवन में ।

लेकिन ख़ुशबू आज तलक है,

दिल के इस सूने आँगन  में ।

 

 

-आनन्द.पाठक-

 

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