मंगलवार, 3 अगस्त 2021

ग़ज़ल 191 चाह अपनी कभी छुपा न सके

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ग़ज़ल 191 : चाह अपनी छुपा न सके--


चाह अपनी कभी छुपा न सके
बात दिल की ज़ुबाँ पे ला न सके

आँख उनकी कही न भर आए
ज़ख़्म दिल का उन्हे दिखा न सके

सामने यक ब यक जो आए वो
शर्म से हम नज़र मिला न  सके

कैसे करता यक़ीन मैं तुम पर
एक वादा तो तुम निभा न सके

ज़िन्दगी के हसीन पहलू को
एक हम हैं कि आजमा न सके

लोग इलजाम धर गए मुझ पर
हम सफ़ाई में कुछ बता न सके

याद क्या हम को आ गया ’आनन’
हम नदामत से आँख उठा न सके 

-आनन्द पाठक-

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