शनिवार, 21 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ : क़िस्त 010

 अनुभूतियाँ : क़िस्त 010 ओके

37

इतना साथ निभाया तुमने

चन्द बरस कुछ और निभाते ।

अजर-अमर है कौन बताओ

अन्तिम सांस तलक रुक जाते ।


 38

सब माया है, सब धोखा है, 

ज्ञानीजन ने कहा सही है।

फिर भी मन है बँध-बँध जाता 

दुनिया का दस्तूर यही है ।


39

अपनी अपनी लक्ष्मण रेखा,

सबकी अपनी सीमाएँ हैं ।

घात लगाए बैठी  दुनिया ,

पाप पुण्य की दुविधाएँ हैं ।


 40

नोक-झोंक तो चलती रहती ,

उल्फ़त की है अदा पुरानी ।

बात बात में रूठ के जाना

गहन प्रेम की यही निशानी ।


-आनन्द.पाठक-


कोई टिप्पणी नहीं: