2122---1212---112/22
ग़ज़ल 193
आप महफ़िल में जब भी आते हैं
साथ अपनी अना भी लाते हैं ।
चाँद तारों की बात तुम जानो
बात धरती की हम सुनाते हैं
जब भी आता चुनाव का मौसम
ख़्वाब क्या क्या न वो दिखाते हैं
वक़्त सबका हिसाब करता है
लोग क्यों ये समझ न पाते हैं
बेसबब बात वो नहीं करते
बेगरज़ हाथ कब मिलाते हैं
अब परिन्दे न लौट कर आते
गाँव अपना जो छोड़ जाते हैं
इस जहाँ की यही रवायत है
लोग आते हैं ,लोग जाते हैं
तुम भी क्यों ग़मजदा हुए ’आनन’
लोग रिश्ते न जब निभाते हैं
-आनन्द पाठक-
अना = अहंकार ,घमंड
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