मफ़ऊलु---फ़ाइलातुन---// मफ़ऊलु----फ़ाइलातुन
221--------------2122 // 221-----------2122
बह्र-ए-मज़ारि’अ मुसम्मन अख़रब
-------------------------------------
तुमको ख़ुदा कहा है, किसने ? पता नहीं है
दिल ने न कह दिया हो !, मैने कहा नहीं है
दर पर तेरे न आऊँ ,सर भी नहीं झुकाऊँ !
दुनिया में आशिक़ी की ,ऐसी सजा नहीं है
पुरतिश्नगी ये मेरी ,जल्वा नुमाई तेरी
मेरी ख़ता भले हो , तेरी ख़ता नहीं है
कब ये जुबाँ खुली है ,तेरी सितमगरी से
ऐसा कभी न होगा ,ऐसा हुआ नहीं है
वो इश्क़ के सफ़र का ,राही नया नया है
आह-ओ-फ़ुगाँ ,जुनूँ की, हद जानता नहीं है
ऐसा नहीं है कोई ,जो इश्क़ का न मारा
जिसकी न आँख नम हो ,जो ग़मजदा नहीं है
उल्फ़त का ये सफ़र भी, कैसा अजब सफ़र है!
जो एक बार जाता , वो लौटता नहीं है
किसके ख़याल में तुम, यूँ गुमशुदा हो ’आनन’?
उल्फ़त की मंज़िलों का, तुमको पता नहीं है
-आनन्द.पाठक
[सं 19-05-18]
221--------------2122 // 221-----------2122
बह्र-ए-मज़ारि’अ मुसम्मन अख़रब
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तुमको ख़ुदा कहा है, किसने ? पता नहीं है
दिल ने न कह दिया हो !, मैने कहा नहीं है
दर पर तेरे न आऊँ ,सर भी नहीं झुकाऊँ !
दुनिया में आशिक़ी की ,ऐसी सजा नहीं है
पुरतिश्नगी ये मेरी ,जल्वा नुमाई तेरी
मेरी ख़ता भले हो , तेरी ख़ता नहीं है
कब ये जुबाँ खुली है ,तेरी सितमगरी से
ऐसा कभी न होगा ,ऐसा हुआ नहीं है
वो इश्क़ के सफ़र का ,राही नया नया है
आह-ओ-फ़ुगाँ ,जुनूँ की, हद जानता नहीं है
ऐसा नहीं है कोई ,जो इश्क़ का न मारा
जिसकी न आँख नम हो ,जो ग़मजदा नहीं है
उल्फ़त का ये सफ़र भी, कैसा अजब सफ़र है!
जो एक बार जाता , वो लौटता नहीं है
किसके ख़याल में तुम, यूँ गुमशुदा हो ’आनन’?
उल्फ़त की मंज़िलों का, तुमको पता नहीं है
-आनन्द.पाठक
[सं 19-05-18]
1 टिप्पणी:
रचना अच्छी है, पर नयापन नहीं मिला, यह खला।
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