शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

एक ग़ज़ल 17 : चलो छोड़ देंगे .....

फ़ऊलुन---फ़ऊलुन--फ़ऊलुन--फ़ऊलुन
122----------122-------122-------122
बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम
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एक ग़ज़ल : चलो छोड़ देंगे......

चलो छोड़ देंगे क़राबत की बातें
मगर कैसे छोड़ेंगे उल्फ़त की बातें ?

ये तर्क-ए-मुहब्बत की बातें ,ख़ुदाया !
क़यामत से पहले क़यामत की बातें

कहाँ ज़िन्दगानी में मिलता है कोई
जो करता हो दिल से रफ़ाक़त की बातें

कभी आस्माँ से उतर आइए तो
करेंगे ज़मीनी हक़ीक़त की बातें

जिसे गुफ़्तगू का सलीक़ा नहीं है
वो ही कर रहा है ज़हानत की बातें

अजी !छोड़िए भी यह शिकवा शिकायत
कहीं बैठ करते है चाहत की बातें

अरे! रिन्द "आनन" को क्या हो गया है!
कि ज़ाहिद से करता है जन्नत की बातें

-आनन्द.पाठक--
क़्रराबत =समीपता ,साथ-साथ उठना बैठना
तर्क-ए-मुहब्बत= मुहब्बत छोड़ना
रफ़ाकत =दोस्ती
रिन्द =मद्दप/शराबी

[सं 19-05-18]

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