बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम महज़ूफ़
फ़इलातुन--फ़इलातुन--फ़इलातुन--फ़ऊलुन
1222-1222-1222--122
-----------
बहुत से रंज-ओ-ग़म ऐसे हैं जो दिल में निहाँ हैं
मगर कुछ ऐसे भी हैं जो निगाहों से अयाँ हैं
ज़माना ’क़ैस’ या ’फ़रहाद’ से आगे तो देखे
हमारे भी तो किस्से में बहुत कुछ खूबियाँ हैं
मता-ए-ज़िन्दगी अपनी लुटा दी दर पे तेरे
भला बातें कहां सूद-ओ-ज़िया की दरमियाँ हैं !
सरापा अक्स हूँ तेरे ही हुस्न-ए-दिलबरी का
बता फिर दो दिलों के बीच में क्यों दूरियाँ हैं ?
जहाँ में झूट की जानिब खड़े मिलते हज़ारों
हक़ीक़त की गवाही देने वाले अब कहाँ हैं
हमारे सोचने से क्या कभी कुछ हो सका है !
हवादिस हम पे अपने ही तरीक़े से रवाँ हैं
नदामतपोश हूं ’आनन’ कि जब वो सामने हों
मगर चेहरे से सारी उलझनें मेरी बयाँ हैं
निहाँ हैं =छुपे हैं
अयाँ हैं = व्यक्त हैं
मता-ए-ज़िन्दगी= ज़िन्दगी भर की कमाई/जमा-पूंजी
सूद-ओ-ज़ियाँ = हानि-लाभ
सरापा अक्स = पूर्ण छवि/प्रतिलिपी/मुजस्सम हमशक्ल
हवादिस = बलायें/मुसीबतें (हवादिस= हादिसा का ब0ब0)
रवाँ हैं =जारी हैं
नदामतपोश हूँ = गुनाहों पर पश्चाताप कर छुपाने लगता हूं
बयाँ हैं =ज़ाहिर हैं
-आनन्द-
09413395592
फ़इलातुन--फ़इलातुन--फ़इलातुन--फ़ऊलुन
1222-1222-1222--122
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बहुत से रंज-ओ-ग़म ऐसे हैं जो दिल में निहाँ हैं
मगर कुछ ऐसे भी हैं जो निगाहों से अयाँ हैं
ज़माना ’क़ैस’ या ’फ़रहाद’ से आगे तो देखे
हमारे भी तो किस्से में बहुत कुछ खूबियाँ हैं
मता-ए-ज़िन्दगी अपनी लुटा दी दर पे तेरे
भला बातें कहां सूद-ओ-ज़िया की दरमियाँ हैं !
सरापा अक्स हूँ तेरे ही हुस्न-ए-दिलबरी का
बता फिर दो दिलों के बीच में क्यों दूरियाँ हैं ?
जहाँ में झूट की जानिब खड़े मिलते हज़ारों
हक़ीक़त की गवाही देने वाले अब कहाँ हैं
हमारे सोचने से क्या कभी कुछ हो सका है !
हवादिस हम पे अपने ही तरीक़े से रवाँ हैं
नदामतपोश हूं ’आनन’ कि जब वो सामने हों
मगर चेहरे से सारी उलझनें मेरी बयाँ हैं
निहाँ हैं =छुपे हैं
अयाँ हैं = व्यक्त हैं
मता-ए-ज़िन्दगी= ज़िन्दगी भर की कमाई/जमा-पूंजी
सूद-ओ-ज़ियाँ = हानि-लाभ
सरापा अक्स = पूर्ण छवि/प्रतिलिपी/मुजस्सम हमशक्ल
हवादिस = बलायें/मुसीबतें (हवादिस= हादिसा का ब0ब0)
रवाँ हैं =जारी हैं
नदामतपोश हूँ = गुनाहों पर पश्चाताप कर छुपाने लगता हूं
बयाँ हैं =ज़ाहिर हैं
-आनन्द-
09413395592
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