Ghazal 39 [ 54 A ]
ग़ज़ल 39 [54]: आप मुझको साथ में पाते--
बह्र-ए-रमल मुसद्दस मक़्लूअ’ महज़ूफ़
2122---2122-----2-
------------------------------
आप मुझको साथ में पाते
आसमाँ से जो उतर आते
चाँद ,तारों ,ख़्वाब , वादों के
झुनझुने देकर न बहलाते
उँगलिया क्यों आप पर उठतीं
आइनों से जो न घबराते
और भी कितने मसाईल हैं
आप हैं अनजान बन जाते
चाँदनी तो चार दिन की है
किसलिए हैं आप इतराते ?
साफ़ चेहरा अब कहाँ ढूँढू
सब रंगे चेहरे नज़र आते ?
बस यही आदत बुरी ’आनन’
दर्द अपने क्यों छुपा जाते ?
-आनन्द.पाठक-
[सं 27-10-18]
बह्र-ए-रमल मुसद्दस मक़्लूअ’ महज़ूफ़
2122---2122-----2-
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आप मुझको साथ में पाते
आसमाँ से जो उतर आते
चाँद ,तारों ,ख़्वाब , वादों के
झुनझुने देकर न बहलाते
उँगलिया क्यों आप पर उठतीं
आइनों से जो न घबराते
और भी कितने मसाईल हैं
आप हैं अनजान बन जाते
चाँदनी तो चार दिन की है
किसलिए हैं आप इतराते ?
साफ़ चेहरा अब कहाँ ढूँढू
सब रंगे चेहरे नज़र आते ?
बस यही आदत बुरी ’आनन’
दर्द अपने क्यों छुपा जाते ?
-आनन्द.पाठक-
[सं 27-10-18]
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