2122---21222----212
और कुछ कर या न कर ,इतना तो कर
आदमी को आदमी समझा तो कर
उँगलियाँ जब भी उठा ,जिस पे उठा
सामने इक आईना रखा तो कर
आज तू है अर्श पर ,कल खाक में
इस अकड़ की चाल से तौबा तो कर
बन्द कमरे में घुटन महसूस होगी
दिल का दरवाजा खुला रखा तो कर
दस्तबस्ता सरनिगूँ यूँ कब तलक ?
मर चुकी ग़ैरत अगर ,ज़िन्दा तो कर
सिर्फ़ तख्ती पर नए नारे न लिख
इन्क़लाबी जोश भी पैदा तो कर
हो चुकी अल्फ़ाज़ की जादूगरी
छोड़ ’आनन’ ,काम कुछ अच्छा तो कर
शब्दार्थ
दस्तबस्ता ,सरनिगूँ = हाथ जोड़े सर झुकाए
-आनन्द.पाठक-
[सं 30-06-19]
और कुछ कर या न कर ,इतना तो कर
आदमी को आदमी समझा तो कर
उँगलियाँ जब भी उठा ,जिस पे उठा
सामने इक आईना रखा तो कर
आज तू है अर्श पर ,कल खाक में
इस अकड़ की चाल से तौबा तो कर
बन्द कमरे में घुटन महसूस होगी
दिल का दरवाजा खुला रखा तो कर
दस्तबस्ता सरनिगूँ यूँ कब तलक ?
मर चुकी ग़ैरत अगर ,ज़िन्दा तो कर
सिर्फ़ तख्ती पर नए नारे न लिख
इन्क़लाबी जोश भी पैदा तो कर
हो चुकी अल्फ़ाज़ की जादूगरी
छोड़ ’आनन’ ,काम कुछ अच्छा तो कर
शब्दार्थ
दस्तबस्ता ,सरनिगूँ = हाथ जोड़े सर झुकाए
-आनन्द.पाठक-
[सं 30-06-19]
2 टिप्पणियां:
kya baat hai sir ji..
आ0 आनन्द जी
उत्साहवर्धन के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद
सादर
-आनन्द.पाठक-
09413395592
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