बहर-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम
मफ़ाईलुन---मफ़ाईलुन---मफ़ाईलुन--मफ़ाईलुन
1222----------1222---------1222--------1222
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एक ग़ज़ल : कहाँ आवाज़ होती है--
कहाँ आवाज़ होती है कभी जब टूटता है दिल
अरे ! रोता है क्य़ूँ प्यारे ! मुहब्बत का यही हासिल
मुहब्बत के समन्दर का सफ़र काग़ज़ की कश्ती में
फ़ना ही इसकी क़िस्मत है, नहीं इसका कोई साहिल
’मुहब्बत का सफ़र आसान है”- तुम ही तो कहते थे
अभी है इब्तिदा प्यारे ! सफ़र आगे का है मुश्किल
समझ कर क्या चले आए, हसीनों की गली में तुम
गिरेबाँ चाक है सबके ,यहाँ हर शख़्स है साइल
तरस आता है ज़ाहिद के तक़ारीर-ओ-दलाइल पर
नसीहत सारे आलम को खुद अपने आप से गाफ़िल
कलीसा हो कि बुतख़ाना कि मस्जिद हो कि मयख़ाना
जहाँ दिल को सुकूँ हासिल हो अपनी तो वही मंज़िल
न जाने क्या समझते हो तुम अपने आप को ’आनन’
जहाँ में है सभी नाक़िस यहाँ कोई नहीं कामिल
-आनन्द.पाठक-
मफ़ाईलुन---मफ़ाईलुन---मफ़ाईलुन--मफ़ाईलुन
1222----------1222---------1222--------1222
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एक ग़ज़ल : कहाँ आवाज़ होती है--
कहाँ आवाज़ होती है कभी जब टूटता है दिल
अरे ! रोता है क्य़ूँ प्यारे ! मुहब्बत का यही हासिल
मुहब्बत के समन्दर का सफ़र काग़ज़ की कश्ती में
फ़ना ही इसकी क़िस्मत है, नहीं इसका कोई साहिल
’मुहब्बत का सफ़र आसान है”- तुम ही तो कहते थे
अभी है इब्तिदा प्यारे ! सफ़र आगे का है मुश्किल
समझ कर क्या चले आए, हसीनों की गली में तुम
गिरेबाँ चाक है सबके ,यहाँ हर शख़्स है साइल
तरस आता है ज़ाहिद के तक़ारीर-ओ-दलाइल पर
नसीहत सारे आलम को खुद अपने आप से गाफ़िल
कलीसा हो कि बुतख़ाना कि मस्जिद हो कि मयख़ाना
जहाँ दिल को सुकूँ हासिल हो अपनी तो वही मंज़िल
न जाने क्या समझते हो तुम अपने आप को ’आनन’
जहाँ में है सभी नाक़िस यहाँ कोई नहीं कामिल
-आनन्द.पाठक-
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