221----2122---// 221--2122
ग़ज़ल
’क़ानून की नज़र में ,सब एक हैं , बराबर
रखते रसूख़वाले , पाँवो तले दबा कर ।
कल तक जहाँ खड़ा था ,"बुधना" वहीं खड़ा है
लूटा है रहबरों ने,सपने दिखा दिखा कर
जब आम आदमी की आँखों में हों शरारे
कर दे नया सवेरा ,सूरज नया उगा कर
क्या सोच कर गए थे ,तुम आइना दिखाने
अंधों की बस्तियों से , आए फ़रेब खा कर
जब दल बदल ही करना, तब दीन क्या धरम क्या
हासिल हुई हो कुरसी ,ईमान जब लुटा कर
उनका लहू बदन का ,अब हो गया है पानी
रखते ज़मीर अपना ,’संसद’ में वो सुला कर
ग़ज़ल
’क़ानून की नज़र में ,सब एक हैं , बराबर
रखते रसूख़वाले , पाँवो तले दबा कर ।
कल तक जहाँ खड़ा था ,"बुधना" वहीं खड़ा है
लूटा है रहबरों ने,सपने दिखा दिखा कर
जब आम आदमी की आँखों में हों शरारे
कर दे नया सवेरा ,सूरज नया उगा कर
क्या सोच कर गए थे ,तुम आइना दिखाने
अंधों की बस्तियों से , आए फ़रेब खा कर
जब दल बदल ही करना, तब दीन क्या धरम क्या
हासिल हुई हो कुरसी ,ईमान जब लुटा कर
उनका लहू बदन का ,अब हो गया है पानी
रखते ज़मीर अपना ,’संसद’ में वो सुला कर
यह देश है हमारा ,हमको इसे बचाना
’आनन’ ज़मीर तेरा ,अब तक नहीं मरा है
रखना इसे तू ज़िन्दा ,गर्दिश में भी बचा कर
-आनन्द.पाठक-
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