212---212----212----212-
फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़ैलुन
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क्या कहूँ मैने किस पे कही है ग़ज़ल
सोच जिसकी थी जैसी सुनी है ग़ज़ल
दौर-ए-हाज़िर की हो रोशनी या धुँआ
सामने आइना रख गई है ग़ज़ल
लोग ख़ामोश हैं खिड़कियाँ बन्द कर
राह-ए-हक़ मे खड़ी थी ,खड़ी है ग़ज़ल
वो तक़ारीर नफ़रत पे करते रहे
प्यार की लौ जगाती रही है ग़ज़ल
मीर-ओ-ग़ालिब से चल कर है पहुँची यहाँ
कब रुकी या झुकी कब थकी है ग़ज़ल ?
लौट आओगे तुम भी इसी राह पर
मेरी तहज़ीब-ए-उलफ़त बनी है ग़ज़ल
आज ’आनन’ तुम्हारा ये तर्ज़-ए-बयां
बेज़ुबाँ की ज़ुबाँ बन गई है ग़ज़ल
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
तक़ारीर = प्रवचन [तक़रीर का ब0व0]
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