गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

ग़ज़ल 139 : दिल में इक अक्स जब उतरा---

212---212---22
फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़े’लुन
बह्र-ए-मुतदारिक मुसद्दस मक़्तूअ’ अल आख़िर 
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एक ग़ज़ल 139 : दिल में इक अक्स जब उतरा--


दिल में  इक अक्स जब उतरा,
दूसरा  फिर कहाँ  उभरा !

बारहा दिल मेरा  टूटा,
टूट कर भी नहीं बिखरा|

कौन वादा निभाता  है
 कौन है क़ौल पर ठहरा ?

शम्मअ’ हूँ ,जलना क़िस्मत में
क्या चमन और क्या सहरा!

इश्क़ करना गुनह क्यों है ?
इश्क़ पर क्यों कड़ा पहरा

आजतक मैं नहीं समझा
इश्क़ से और क्या गहरा ?

है ख़बर अब कहाँ ’आनन’
वक़्त गुज़रा नहीं  गुज़रा !

-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ
बारहा = बार बार
bb 08-06-21

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