गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

ग़ज़ल 138 : दिल ख़ुद ही तुम्हारा आदिल है --

मूल बहर  112---112---112---112-
फ़अ’लुन ----फ़अ’लुन---फ़अ’लुन--फ़अ’लुन
बहर-ए-मुतदारिक मुसम्मन मख़्बून 
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एक ग़ज़ल 138 : दिल ख़ुद ही तुम्हारा आदिल है --

दिल ख़ुद ही तुम्हारा आदिल है
समझो क्या सच क्या बातिल है

उँगली तो उठाना  है   आसाँ
पर कौन यहाँ कब कामिल है

टूटी कश्ती, हस्ती मेरी
दरिया है ,ग़म है, साहिल है

मक़्रूज़ रहा है दिल अपना
कुछ तेरी दुआ भी  शामिल है

इक तेरा तसव्वुर है दिल में
दिल हुस्न-ओ-अदा में गाफ़िल है

कुछ और नशीली कर आँखें
खंजर ये तेरा नाक़ाबिल  है

इस वक़्त-ए-आख़िर में ’आनन’
जो हासिल था ,लाहासिल है

-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ
बातिल =असत्य ,झूठ
मक़्रूज़  = ऋणी ,कर्ज़दार
लाहासिल= व्यर्थ ,बेकार

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