क़िस्त 87
1
यूँ रूठ के चल देना
हौले से हँस कर
फिर बात बदल देना
2
अबतक क्या कम भोगा ?
उल्फ़त में तेरे
जो होना है होगा
3
ख़ामोश सदा रहती
पहलू में आ कर
कुछ तुम भी तो कहती
4
ये राज़ न खोलेगा
पूछ रही हो क्या
दरपन क्या बोलेगा
5
लहरा कर चलती हो
खुद से ही छुप कर
जब छत पे टहलती हो
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-आनन्द.पाठक-
1 टिप्पणी:
वाह
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