क़िस्त 89
1
वो जख़्म अगर देता
कौन सा जख़्म भला
जो वक़्त न भर देता
2
आया है मेरा हमदम
बात मेरी उस ने
रख्खी तो कम से कम
3
इतना ही काफी है
कोई ख़यालों में
जीवन का साथी है
4
दुनिया के मेले में
गाता रहता है
क्या दिल यह अकेले में
5
उतरा है कोई मन में
फूल खिले मेरे
सुधियों के उपवन में
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