शनिवार, 28 जून 2025

ग़ज़ल 440 [14-G)] : एक मुद्दत से वह दुनिया से--

 ग़ज़ल 440 [ 14 जी] : एक मुद्दत से वह दुनिया से--


2122---2122---2122

एक मुद्दत से वो  दुनिया से ख़फ़ा है ।

  मन मुताबिक जब न उसको कुछ मिला है 


जख़्म दिल के कर रहे है हक़ बयानी

आदमी हालात से कितना लड़ा है ।


हारने या जीतने से है ज़ियादा

आप का ख़ुद हौसला कितना बड़ा है।


बाज कब आती हवाएँ साज़िशों से

पर चिराग़-ए-इश्क़ कब इन से डरा है।


आदमी की साज़िशो से साफ़ ज़ाहिर

आदमी अख़्लाक़ से कितना गिरा है ।


जोश हो, हिम्मत इरादा हो अगर तो

कौन सा है काम मुश्किल जो रुका है।


ज़िंदगी है इक गुहर नायाब ’आनन’

एक तुहफ़ा है , ख़ुदा ने की अता है ।


-आनन्द.पाठक-





गुरुवार, 19 जून 2025

ग़ज़ल 439 [ 13-G) : जो राहें ख़ुद बनाते हैं--

 ग़ज़ल 439 [13-G]


1222---1222---1222---1222


जो राहें ख़ुद बनाते हैं , उन्हें क्या खौफ़, आफ़त क्या

मुजस्सम ख़ुद विरासत हैं, उधारी की विरासत क्या ।


पले हों ’रेवड़ी’ पर जो, सदा ख़ैरात पर जीते

उन्हें तुम क्यों जगाते हों, करेंगे वो बग़ावत क्या ।


नज़र रहते हुए भी जो, बने कस्दन हैं नाबीना

उन्हें करना नहीं कुछ भी तो फिर शिकवा शिकायत क्या ।


रखूँ उम्मीद क्या उनसे, करेगा वह भला किसका

हवा का रुख़ न पहचाने करेगा वह सियासत क्या ।


मिले वह सामने खुल कर मिलाए हाथ भी हँस कर

नहीं साजिश रचेगा वो, कोई देगा जमानत क्या ।


अगर ना तरबियत सालिम, नहीं अख़्लाक़ ही साबित

बिना बुनियाद के होती कहीं पुख़्ता इमारत क्या ।


करूँ मैं बात क्या ’आनन’, नहीं तहजीब हो जिसमे

पता कुछ भी न हो जिसको, अदब क्या है शराफ़त क्या ।


-आनन्द.पाठक-


सोमवार, 16 जून 2025

अनुभूतियाँ 183/70

 अनुभूतियाँ 183/70

:1:
जीवन है तो सुख दुख भी है
राग-रंग भी, मिलन-जुदाई
प्रथम साँस से अन्त साँस तक
जीवन की पटकथा समाई ।

:2:
धन दौलत ये झूठ दिखावा
एक छलावा सब माया है
छोड़ यहीं जाना है सबकुछ
कौन अमर होकर आया है।

:3:
्ज्योति जगे जब मन के अंदर
मन प्रकाश से भर जाता है
क्षमा ,दया,करुणा जग जाती
अहंकार तब मर जाता है ।

:4:
सत्य सदा कड़वा होता है
झूठ सदा मनमोहक होता
झूठ हमेशा रंग बदलता
सत्य ज्योति का द्योतक होता
-आनन्द.पाठक ’आनन’