गीत 092 : स्वर्ग यहीं है, नर्क यहीं है
स्वर्ग यहीं है , नर्क यहीं है
बाक़ी सव प्रवचन की बातें ।
मोह पाश में जकड़ा प्राणी
तीरथ तीरथ घूम रहा है ।
मन की व्यथा प्रबल है इतनी
पत्थर पत्थर चूम रहा है ।
मन के अंदर ज्योति जगा ले
कट जाएँगी काली रातें ।
एक भरोसा रख तो मन में ,
क्यों रखता है मन में उलझन ?
क्यों रखता है मन में उलझन ?
वह तेरा आराध्य अगर है
फिर क्यों रहता है विचलित मन।
जीवन है तो आएँगे ही
आँधी, तूफ़ाँ झंझावातें ।
सुख दुख तो जीवन का क्रम है
उतरा करते हैं आँगन में ।
कभी अँधेरा , कभी उजाला ,
कभी अँधेरा , कभी उजाला ,
नदियाँ भी सूखीं सावन में ।
अपना अपना दर्द सभी का
अपनी अपनी हैं सौगातें ।
-आनन्द.पाठक-
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