गुरुवार, 21 अगस्त 2025

गीत 092 : स्वर्ग यहीं है, नर्क यहीं है-

 गीत 092 : स्वर्ग यहीं है, नर्क यहीं है

स्वर्ग यहीं है , नर्क यहीं है
बाक़ी सव प्रवचन की बातें ।

            मोह पाश में जकड़ा प्राणी
            तीरथ तीरथ घूम रहा है ।
            मन की व्यथा प्रबल है इतनी
            पत्थर पत्थर चूम रहा है ।
मन के अंदर ज्योति जगा ले
कट जाएँगी काली  रातें ।

            एक भरोसा रख तो मन में ,
            क्यों रखता है मन में उलझन ?
             वह तेरा आराध्य अगर है
            फिर क्यों रहता है विचलित मन।
जीवन है तो आएँगे ही
आँधी, तूफ़ाँ झंझावातें ।

            सुख दुख तो जीवन का क्रम है
            उतरा करते हैं आँगन में ।
            कभी अँधेरा , कभी उजाला ,
            नदियाँ भी सूखीं  सावन में ।
अपना अपना दर्द सभी का
अपनी अपनी हैं सौगातें ।

-आनन्द.पाठक- 

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