2122---2122-----212
रास्ता इक और आयेगा निकल
हौसले से दो क़दम आगे तो चल
लोग कहते हैं भले ,कहते रहें
तू इरादों मे न कर रद्द-ओ-बदल
यूँ हज़ारो लोग मिलते हैं यहाँ
’आदमी’ मिलता कहाँ है आजकल
इन्क़लाबी सोच है उसकी ,मगर
क्यूँ बदल जाता है वो वक़्त-ए-अमल
इश्क़वालों की अजब तासीर से
संग दिलवाले भी जाते हैं पिघल
इक ग़म-ए-जानाँ ही क्यूँ हर्फ़-ए-सुखन
कुछ ग़म-ए-दौराँ भी कर ,हुस्न-ए-ग़ज़ल
खाक से ज़्यादा नहीं हस्ती तेरी
इस लिए ’आनन’ न तू ज़्यादा उछल
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
ग़म-ए-जानाँ = अपना दर्द
ग़म-ए-दौराँ = ज़माने का दर्द
जौक़-ए-सुखन = ग़ज़ल लिखने/कहने का शौक़
हुस्न-ए-ग़ज़ल = ग़ज़ल का सौन्दर्य
वक़्त-ए-अमल = अमल करने के समय
[सं 30-06-19]
रास्ता इक और आयेगा निकल
हौसले से दो क़दम आगे तो चल
लोग कहते हैं भले ,कहते रहें
तू इरादों मे न कर रद्द-ओ-बदल
यूँ हज़ारो लोग मिलते हैं यहाँ
’आदमी’ मिलता कहाँ है आजकल
इन्क़लाबी सोच है उसकी ,मगर
क्यूँ बदल जाता है वो वक़्त-ए-अमल
इश्क़वालों की अजब तासीर से
संग दिलवाले भी जाते हैं पिघल
इक ग़म-ए-जानाँ ही क्यूँ हर्फ़-ए-सुखन
कुछ ग़म-ए-दौराँ भी कर ,हुस्न-ए-ग़ज़ल
खाक से ज़्यादा नहीं हस्ती तेरी
इस लिए ’आनन’ न तू ज़्यादा उछल
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
ग़म-ए-जानाँ = अपना दर्द
ग़म-ए-दौराँ = ज़माने का दर्द
जौक़-ए-सुखन = ग़ज़ल लिखने/कहने का शौक़
हुस्न-ए-ग़ज़ल = ग़ज़ल का सौन्दर्य
वक़्त-ए-अमल = अमल करने के समय
[सं 30-06-19]
5 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना पांच लिंकों का आनन्द में मंगलवार 21 जुलाई 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
वाह !
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल , दिल को छूती हुई ...
"लोग कहते हैं भले ,कहते रहें तू इरादों मे न कर रद्द-ओ-बदल"
बहुत खूबसूरत ... बधाई !!! - प्रमोद कुमार कुश 'तनहा'
aadarNeeya/aadarNeeyaa
utsaaH vardhan ke liYe aap sabhi kaa bahut bahut Dhanyavaad
Mera Hindi ka programme abhi kaam nahiN kar rahaa hai , is Liye roman meN dhanyavaad pragat kar rahaa hoon
saadar
anand pathak
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