क़िस्त 83
1
अब क्या जीना तुम बिन !
आस यही मन में
तुम आओगे इक दिन
2
खिंचता जाता मन है
तेरी आँखों में
कैसा आकर्षन है
3
पीड़ा अनजानी है
एक सी क्यों लगती
दोनों की कहानी है
4
कह दो जो कहना है
वक़्त बहुत कम है
कितने दिन रहना है
5
यह स्नेह का बन्धन है
आप यहाँ आए
स्वागत अभिनन्दन है
1 टिप्पणी:
सुन्दर
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