शुक्रवार, 11 मार्च 2022

ग़ज़ल 221[86D] : न रूठो तुम ,चली आओ--

 ग़ज़ल 221[86 D ]

1222---1222----1222---1222


चली आओ, न रूठो तुम,  करेंगे प्यार होली में
मुझे देना है दिल अपना तुम्हें उपहार होली में

भले आओ न आओ तुम, गिला कुछ भी नहीं तुमसे
करूँगा याद मैं तुमको, सनम सौ बार होली में

ख़ता है छेड़ना तुमको, पता है क्या सज़ा होगी
कहाँ कब मानता है दिल, सज़ा स्वीकार होली में

तेरी तसवीर में ही रंग भर कर मान लूँगा मैं
हुई चाहत मेरी पूरी, प्रिये ! इस बार होली  में

ज़माने की निगाहों से ज़रा बच कर चला करना
ख़बर क्या क्या उड़ा देंगे, सर-ए-बाज़ार होली में

ये फ़ागुन की हवाएँ हैं, नशा भरती हैं नस-नस में
तुम्हारा रूप उस पर से, जगाता प्यार होली में

गिरीं रुख़सार पर ज़ुल्फ़ें,  जवानी खुद से बेपरवा
करे जादू तुम्हारे रूप का  शृंगार होली में 

लगाना रंग ’आनन’ को. न उतरे ज़िंदगी भर जो
यही है प्यार का मौसम गुल-ओ-गुलज़ार होली में


-आनन्द.पाठक-

  

कोई टिप्पणी नहीं: