शुक्रवार, 11 मार्च 2022

ग़ज़ल 222 [01D] : करें जब गोपियों की चूड़ियाँ --

 ग़ज़ल 222[01D]

1222---1222---1222---1222


ग़ज़ल 221 के ज़मीन पर 
एक और ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ।

ग़ज़ल --होली में


करें जो गोपियों की चूड़ियाँ झंकार होली में ,
बिरज में खूब देतीं है मज़ा लठमार होली में   ।

अबीरों के उड़ें बादल कहीं है फ़ाग की मस्ती
कहीं गोरी रचाती सोलहो शृंगार होली में  ।

इधर कान्हा की टोली है उधर ’राधा’ अकेली है
चलें दोनो तरफ़ से रंग की बौछार होली में ।

कहीं है  थाप चंगों पर, कहीं पायल की छमछम है,
कही पर कर रहा कोई सतत मनुहार होली में ।

किसी के रंग में रँग जा, न आता रोज़ यह मौसम,
किसी का हो गया है जो, वही हुशियार होली में ।

बिरज की हो, अवध की हो, कि होली हो’ बनारस’ की
खुले दिल से करें स्वागत , करें सत्कार होली में ।

गुलालों में घुली हैं स्नेह की ख़ुशबू  मुहब्बत की ,
भुला कर सब गिले शिकवे गले मिल यार होली में ।

न खाली हाथ लौटा है यहाँ से आजतक कोई ,
चले आना कि ’आनन’ का खुला है द्वार होली में ।


-आनन्द.पाठक-
8800927181

इसी ग़ज़ल को मेरी आवाज़ में सुनें



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