ग़ज़ल 222[01D]
1222---1222---1222---1222
ग़ज़ल 221 के ज़मीन पर
एक और ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ।
ग़ज़ल --होली में
करें जो गोपियों की चूड़ियाँ झंकार होली में ,
बिरज में खूब देतीं है मज़ा लठमार होली में ।
अबीरों के उड़ें बादल कहीं है फ़ाग की मस्ती
कहीं गोरी रचाती सोलहो शृंगार होली में ।
इधर कान्हा की टोली है उधर ’राधा’ अकेली है
चलें दोनो तरफ़ से रंग की बौछार होली में ।
कहीं है थाप चंगों पर, कहीं पायल की छमछम है,
कही पर कर रहा कोई सतत मनुहार होली में ।
किसी के रंग में रँग जा, न आता रोज़ यह मौसम,
किसी का हो गया है जो, वही हुशियार होली में ।
बिरज की हो, अवध की हो, कि होली हो’ बनारस’ की
खुले दिल से करें स्वागत , करें सत्कार होली में ।
गुलालों में घुली हैं स्नेह की ख़ुशबू मुहब्बत की ,
भुला कर सब गिले शिकवे गले मिल यार होली में ।
न खाली हाथ लौटा है यहाँ से आजतक कोई ,
चले आना कि ’आनन’ का खुला है द्वार होली में ।
-आनन्द.पाठक-
8800927181
इसी ग़ज़ल को मेरी आवाज़ में सुनें
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें