शनिवार, 22 अक्टूबर 2022

मुक्तक 08 : 01E : दीपावली पर-क़लम का सफ़र से

 कुछ मुक्तक 05E : दीपावली पर

:1:
पर्व दीपावली का मनाते चलें
प्यार सबके दिलों में जगाते चलें
ये अँधेरे हैं इतने घने भी नहीं
हौसलों से दि्ये हम जलाते चलें

:2:
आग नफ़रत की अपनी मिटा तो सही
तीरगी अपने दिल की हटा तो सही
इन चराग़ों की जलती हुई रोशनी
राह दुनिया को मिल कर दिखा तो सही

:3:
कर के कितने जतन प्रेम के रंग भर
अल्पनाएँ सजा कर खड़ी द्वार पर
एक सजनी जला कर दिया साध का
राह ’साजन’ की तकती रही रात भर

:4:
प्रीति के स्नेह से प्राण-बाती जले
दो दिये जल रहे हैं गगन के तले
लिख रहें हैं कहानी नए दौर की
हाथ में हाथ डाले सफ़र पर चले 

:5:
घर के आँगन में पहले जलाना दिये
फिर मुँडेरों पे उनको  सजाना. प्रिये !
राह सबको दिखाते रहें दीप ये-
हर समय रोशनी का ख़जाना लिए ।

-आनन्द पाठक-

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