बुधवार, 12 अक्तूबर 2022

ग़ज़ल 276 [41इ] : शाख से पत्तियाँ टूट कर

 ग़ज़ल 276 [41इ]

212--212--212


शाख से पत्तियाँ टूट कर

उड़ गई हैं न जाने किधर


जब मिलन के लिए चल पड़ी

फिर न लौटी नदी अपने घर


चार दिन की खुशी के लिए

दौड़ते ही रहे उम्र भर


एक पल का ग़लत फ़ैसला

कर गया ज़िंदगी दर बदर


आशियाने परिंदो के थे-

अब न आँगन में है वो शजर 


इक नज़र भर तुम्हें देख लूँ

ज़िंदगी एक पल तो ठहर


बात बरसों की सब कर रहे

अगले पल की न कोई ख़बर


तुमको ’आनन’ पता क्या नहीं

इश्क का है सफ़र पुरख़तर


-आनन्द.पाठक- 


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