शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

ग़ज़ल 273[38E]: तहत पर्दे के इक पर्दा मिलेगा

 ग़ज़ल 273 [38E]

1222---1222---122


तहत पर्दे के इक पर्दा मिलेगा

अगर सोचूँ तो हमसाया मिलेगा


कहाँ तुम साफ़ चेहरा ढूँढत्ते हो

यहाँ सबका रंगा चेहरा मिलेगा


तलब बुझती नहीं है लाख चाहें

हमारा दिल तुम्हें प्यासा मिलेगा


भले ही भीड़ में दिखता तुम्हें है

मगर अन्दर से वह तनहा मिलेगा


हवाएँ ख़ौफ़ का मंज़र दिखाती

चमन का बाग़बाँ सहमा मिलेगा


शजर को डालियाँ कब बोझ लगती

वो अपने रंग में गाता मिलेगा


छुपा कर रंज़ो-ग़म रखता है दिल में

मगर ’आनन’ तुम्हें हँसता मिलेगा


-आनन्द.पाठक-


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