122---122---122---122
जिन्हें कुछ न करना, न दुख ही जताना
ग़म.ए.दिल फिर अपना उन्हें क्या सुनाना
अँधेरों की ही वह हिमायत है करता
कभी रोशनी के वह म'आनी न जाना
जिसे सरफिरा कह के ख़ारिज़ किया है
बदल देगा इक दिन वही यह जमाना
वो कहता है कुछ और कुछ सोचता है
पलट जाने का वह खिलाड़ी पुराना ।
वो परचम लिए झूठ का चल रहा है
वही चंद बेजान नारे लगाना ।
सियासत में उसको सभी लगता जायज़
लहू हो बहाना कि बस्ती जलाना ।
तकारीर उनकी तो कुछ और 'आनन'
हक़ीक़त में उनको अमल में न लाना ।
-आनन-
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