2122 --1212--22
रोज़ सपनें नए दिखाता है
जाने क्या क्या हमें बताता है
यह हुनर है कमाल है उसका
वो हवा में महल बनाता है
आग-सा वह बयान दे दे कर
बारहा वह हमें डराता है ।
जब तलक 'वोट' की ज़रूरत है
दर पे आकर वह सर झुकाता है
छोड़िए बात क्या करें उसकी
खु़द की गैरत जो बेच खाता है
साज़िशों मे रहा मुलव्वस वह
खुद को मासूम-सा दिखाता है
खुद गरज हो गया है वो, 'आनन'
खुद से आगे न देख पाता है ।
-आनन-
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