गीत 06[11]
एक समर्पण गीत ....
चेतना हो जहाँ शून्य उस मोड़ पर,
वेदना हो जहाँ मूक उस छोर पर ,
हँस उठे प्राण-मन खिल उठे रोम तन
गूँज भर दो मेरी बांसुरी में ....।
भावना के सिमटने लगे दायरे ,
टूटने जब लगे प्रीत के आसरे ,
मैं पुकारूं तुझे श्वांस बन कर मिलो
जिन्दगी के सफ़र आख़िरी में ....।
अर्चना के सभी मूल्य मिटने लगे ,
साधनायें बिना अर्थ लगाने लगे ,
रस मिला दो अधर का भी अपना ,प्रिये!
प्रीति की खिल रही मंजरी में.... ।
गंध ही जब नहीं फूल किस काम का !
जब न तुम ही जुड़ो नाम किस नाम का
गीत मेरे कभी लड़खडाने लगे
सुर मिलाना कि रस-माधुरी में ...।
रूप क्या है , सजा कल सजे ना सजे ,
मांग क्या है , भरा कल भरे न भरे ,
शुभ मुहूरत मिलन की घड़ी देख कर
दान कर दो मेरी अंजुरी में ....॥
प्यार ही में रँगा तन रँगा मन रँगा ,
इन्द्रधनु भी रँगा सप्त रंग में रँगा ,
रंग ऐसा भरो जो कि मिट ना सके
अर्ध विकसित प्रणय-पंखुरी में ....।
---आनन्द पाठक-
[सं 04-08-19]
चेतना हो जहाँ शून्य उस मोड़ पर,
वेदना हो जहाँ मूक उस छोर पर ,
हँस उठे प्राण-मन खिल उठे रोम तन
गूँज भर दो मेरी बांसुरी में ....।
भावना के सिमटने लगे दायरे ,
टूटने जब लगे प्रीत के आसरे ,
मैं पुकारूं तुझे श्वांस बन कर मिलो
जिन्दगी के सफ़र आख़िरी में ....।
अर्चना के सभी मूल्य मिटने लगे ,
साधनायें बिना अर्थ लगाने लगे ,
रस मिला दो अधर का भी अपना ,प्रिये!
प्रीति की खिल रही मंजरी में.... ।
गंध ही जब नहीं फूल किस काम का !
जब न तुम ही जुड़ो नाम किस नाम का
गीत मेरे कभी लड़खडाने लगे
सुर मिलाना कि रस-माधुरी में ...।
रूप क्या है , सजा कल सजे ना सजे ,
मांग क्या है , भरा कल भरे न भरे ,
शुभ मुहूरत मिलन की घड़ी देख कर
दान कर दो मेरी अंजुरी में ....॥
प्यार ही में रँगा तन रँगा मन रँगा ,
इन्द्रधनु भी रँगा सप्त रंग में रँगा ,
रंग ऐसा भरो जो कि मिट ना सके
अर्ध विकसित प्रणय-पंखुरी में ....।
---आनन्द पाठक-
[सं 04-08-19]
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