रह कर भी समन्दर में प्यासी ये मछलियाँ
किस बात पे रहती है उदासी ये मछलियाँ
'राधा' की प्यास हो या 'मीरा' की प्यास हो
हर प्यास एक रंग की प्यासी ये मछलियाँ
पानी के आईने में नया रूप देखतीं
दो पल को खुशगवार रूवासी ये मछलियाँ
हर बार फेंकते है नए जाल मछेरे -
फंसने के लिए आतुर प्यासी ये मछलियाँ
अब रास्ता दिखाती नहीं 'आदि-मनु ' को
हो गई हैं जब से सियासी ये मछलियाँ
गहराइयों में डूब कर भी डूबती नहीं
किस लोक की होती निवासी ये मछलियाँ
वह ढूढती हैं किस को ,किस का पता लिए
किस छोर को जाती हैं प्रवासी ये मछलियाँ
3 टिप्पणियां:
" समुन्दर में मछलियाँ प्यासी और उदास हो ". बहुत ही बढ़िया कल्पना से लबरेज रचना
" समुन्दर में मछलियाँ प्यासी और उदास हो ". बहुत ही बढ़िया कल्पना से लबरेज रचना
आदरणीय मिश्र जी
भाव सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आप से प्रेरणा मिलती रहेगी
-आनन्द
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