कुछ मुक्तक
पारदर्शी तेरा आवरण
कर न पाए तुझे हम वरण
हम ने दर्शन बहुत कुछ पढ़ा
पढ़ न पाए तेरा व्याकरण
-- ० --
भावना का स्वरुपण हुआ
अर्चना का निमंत्रण हुआ
फूल क्या मैं धरूँ देवता !
लो प्राण का ही समर्पण हुआ
----०-----
आज अपना हूँ मैं संस्मरण
तुम भले ही कहो विस्मरण
आज स्वीकार कर लो मेरी
जिंदगी का नया संस्करण
---0---
चाहा था किसी के क़दमों का पायल की सुनेंगे झंकारे
सावन की जब रिमझिम होगी ,हम उनसे करेंगे मनुहारें
माँगा था गगन से चाँद कभी दो हाथ उठा कर यह अपने
रख दिया मेरे इन हाथों में क्यों लाल दहकते अंगारे
-आनन्द.पाठक-
पारदर्शी तेरा आवरण
कर न पाए तुझे हम वरण
हम ने दर्शन बहुत कुछ पढ़ा
पढ़ न पाए तेरा व्याकरण
-- ० --
भावना का स्वरुपण हुआ
अर्चना का निमंत्रण हुआ
फूल क्या मैं धरूँ देवता !
लो प्राण का ही समर्पण हुआ
----०-----
आज अपना हूँ मैं संस्मरण
तुम भले ही कहो विस्मरण
आज स्वीकार कर लो मेरी
जिंदगी का नया संस्करण
---0---
चाहा था किसी के क़दमों का पायल की सुनेंगे झंकारे
सावन की जब रिमझिम होगी ,हम उनसे करेंगे मनुहारें
माँगा था गगन से चाँद कभी दो हाथ उठा कर यह अपने
रख दिया मेरे इन हाथों में क्यों लाल दहकते अंगारे
-आनन्द.पाठक-
3 टिप्पणियां:
बेहतरीन भावपूर्ण मुक्तक!!
Waah !!
Atisundar kavita...sankshipt shabdon me gahan arth liye atisundar shabd rachna....Waah !!!
प्रिय रंजना जी
आप का ब्लॉग देखा बहुत सुन्दर है
आप ने rachanna सराही ,धन्यवाद
--आनंद
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