शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

अनुभूतियाँ : क़िस्त003

अनुभूतियाँ 003 OK


009

  रिश्ते-नाते, प्रेम, लगन सब

कुछ  शब्द बचे , निष्प्राण हुए  

 जाने क्यों ऎसा लगता है 

सब  मतलब के उपमान हुए  


010

 मेरी कुटिया  राजमहल है

दुनिया से क्या लेना देना,

तुम्हें मुबारक सोना चाँदी

 मुझे बहुत है चना चबेना


011

कतरा क़तरा आँसू मेरे 

जीवन के मकरन्द बनेंगे

सागर से भी गहरे होंगे

पीड़ा से जब छन्द बनेंगे 


012

सबके अपने अपने  सपने

सब के अपने अपने ग़म हैं

 तुम ही एक नहीं दुनिया में

आँखें रहती जिसकी नम हैं


-आनन्द.पाठक-


मंगलवार, 19 जनवरी 2021

ग़ज़ल 159 : रफ़्ता रफ़्ता कटी ज़िन्दगी--


बह्र-ए-मुतदारिक मुसद्दस  सालिम
212-----212-----212
फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़ाइलुन

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एक ग़ज़ल

 

रफ़्ता रफ़्ता कटी ज़िन्दगी

चाहे जैसी बुरी या भली 

 

सर झुकाया न मैने कभी

एक हासिल यही बस ख़ुशी

 

उम्र भर का अँधेरा रहा

चार दिन की रही चाँदनी

 

मैं भी कोई फ़रिश्ता नहीं

कुछ तो मुझ में भी होगी कमी

 

क्यों जलाते नहीं तुम दिया

क्यों बढ़ाते हो बस  तीरगी

 

दिल में हो रोशनी तो दिखे

रब की तख़्लीक़ ,कारीगरी

 

जब से दिल हो गया आइना

करता रहता वही रहबरी

 

दिल में ’आनन’ के आ जाइए

और फिर देखिए आशिक़ी

 

-आनन्द.पाठक-

 

रविवार, 17 जनवरी 2021

ग़ज़ल158 :ज़माने से जमी है बर्फ़---

ग़ज़ल 158 : मौसम बदलेगा 

1222---1222---1222--1222
बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम 
मुफ़ाईलुन--मुफ़ाईलुन--मुफ़ाईलुन--मुफ़ाईलुन
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ग़ज़ल 158 : ज़माने से जमी है बर्फ़--

जमाने से जमी है बर्फ़ रिश्तों पर, पिघलने दो
निकलती राह कोई है नई, तो फिर निकलने दो

हवाएँ छू के आती हैं तुम्हारा जब कभी आँचल
बदल जाता इधर मौसम, उधर तुम भी बदलने दो

ख़याल-ओ-ख़्वाब हैं, तसवीर है, यादें तुम्हारी हैं
इन्हीं से दिल बहलता है मेरे जानम ! बहलने दो

पता कुछ भी नहीं मुझको किधर यह ले के जाएगा
अगर दिल चल पड़ा राह-ए-मुहब्बत पे,तो चलने दो

वो कह कर तो गया था शाम ढलते लौट आएगा
मुडेरे पर रखा दीया अभी कुछ देर जलने दो

तुम्हारे दर पे आऊँगा सुनाने दास्ताँ अपनी
अभी हूँ वक़्त का मारा ज़रा मुझको सँभलने दो

यक़ीनन कुछ कमी होगी तुम्हारे इश्क़ में ’आनन’
अगर दिल में हवस हो या हसद, उनको निकलने दो

-आनन्द.पाठक--




शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

अनुभूतियाँ : क़िस्त 002


 अनुभूतियाँ 002 ok


005

 क्यों याद करूँउस दुनिया को ,

जिस दुनिया ने  छोड़ा मुझको,

दिल से जुड़ने की चाहत थी,

बस अपनो ने तोड़ा मुझको। 


006

मैं फूल बिछाता रहा इधर,

वो काँटों  पर काँटे बोए,

 जब मै रोया तनहाई  में

ये दुनिया वाले कब रोए ?


007

फूलों की अपनी मर्यादा 

गुलशन में रहना होता है,

तूफ़ाँ, बिजली, झंझावातें

फूलों को सहना होता है।


008

दुनिया ने जब समझा ही नहीं

 मै और अधिक क्या समझाता

क्या और सफ़ाई मैं देता,

 दुनिया को क्या क्या बतलाता।


-आनन्द.पाठक-


इन अनुभूतियॊं को आप यहाँ सुन सकते हैं

https://youtu.be/CR04_kyQCpQ







अनुभूतियाँ : क़िस्त 001

  कुछ अनुभूतियाँ :001 ok 


001 
दिल प्यार लुटाते चलता है
इस दिल की अपनी चाह अलग
ये दुनिया वाले क्या समझें
दुनिया की अपनी राह अलग

002 
वो वक़्त गया वो दिन बीता
 कल तक जो मेरे अपने  थे
मौसम बदला वो ग़ैर हुए
 इन आँखों के जो सपने  थे

003 
पर्वत जितना धीर अटल हो
उसके अन्दर भी इक दिल है
दर्द उसे भी होता रहता
दुनिया क्यों इससे गाफ़िल है

004 
 कश्ती दर्या में आ ही गई
लहरों के थपेड़े साहिल क्या
तूफ़ान बला से क्या डरना
फिर हासिल क्यालाहासिल क्या

-आनन्द.पाठक-


इन्हें मेरी आवाज़ में सुनें---You Tube par




U can see Video of it right here