बुधवार, 31 मार्च 2021

अनुभूतियाँ : क़िस्त 07

 

अनुभूतियाँ  : क़िस्त 07

 

1

प्रेम स्नेह जब रिक्त हो गया

प्रणय-दीप यह जलता कब तक?

रात अभी पूरी बाक़ी है

बिन बाती यह चलता कब तक?

 

2

दुष्कर थीं पथरीली राहें-

हठ था तुम्हारा साथ चलोगी।

कितना तुम को समझाया था,

हर ठोकर पर हाथ मलोगी।

 

3

जीवन पथ का राही हूँ मैं,

एक अकेला कई रूप में ।

आजीवन चलता रहता हूँ,

कभी छांव मेंकभी धूप में।

 

4

बिना बताए चली गई तुम ,

क्या ग़लती थी, प्रिये हमारी।

इतना तो बतला कर जाती,

कब तक देखूँ राह तुम्हारी ।

 

-आनन्द.पाठक-

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