बुधवार, 31 मार्च 2021

अनुभूतियाँ : क़िस्त 007

 

अनुभूतियाँ  : क़िस्त 007 ओके

 

025

प्रेम स्नेह जब रिक्त हो गया

प्रणय-दीप यह जलता कब तक?

रात अभी पूरी बाक़ी है

लौ- बाती यह चलता कब तक?

 

026

दुष्कर हैं पथरीली राहें-

हठ था कि तुम साथ चलोगी।

कितना तुम को समझाया था,

हर ठोकर पर हाथ मलोगी।

 

027

जीवन पथ का राही हूँ मैं,

एक अकेला कई रूप में ।

आजीवन चलता रहता हूँ,

कभी छांव मेंकभी धूप में।

 

028

ना जाने क्यों नहीं बजाते
कान्हा वंशी जमुना तीरे
फिर भी ’राधा’ आती रहती
नयन झुकाए धीरे धीरे

-आनन्द.पाठक-

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