अनुभूतियाँ 05
1
सच ही कहा था तुमने उस दिन
" जा तो रही हूँ सजल नयन से"
छन्द छन्द बन कर उभरूँगी
गीत लिखोगे कभी लगन से। "
2
सुख-दुख का ताना-बाना है,
जीवन है रंगीन चदरिया ।
नयनो के जल से धोता हूँ,
हँसी खुशी यह कटे उमरिया।
3
बरसों से सच समझ रहे थे ,
लेकिन वह था भरम हमारा।
भला किया जो तोड़ गई तुम
आभारी दिल, करम तुम्हारा ।
4
दीप भले हो और किसी का
ज्योति प्रीत की आती तो है।
पीड़ा मेरी चुपके चुपके ,
किरनों से बतियाती तो है
-आनन्द.पाठक-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें