शनिवार, 6 मार्च 2021

अनुभूतियाँ : क़िस्त 005

 अनुभूतियाँ 005 ok


017

सच ही  कहा था तुमने उस दिन

" जा तो रही हूँ  सजल नयन से"

छन्द छन्द बन कर उतरूँगी

गीत लिखोगे कभी लगन से। "


018

सुख-दुख का ताना-बाना है,

जीवन है रंगीन चदरिया ।

नयनो के जल से धोता हूँ,

हँसी खुशी यह कटे उमरिया।


019

जिसको सच हम समझ रहे थे ,

वह था केवल भरम हमारा।

भला किया जो तोड़ गई तुम

आभारी दिल, करम तुम्हारा ।


020

दीप भले हो और किसी का

ज्योति प्रीत की आती तो है।

पीड़ा मेरी चुपके चुपके ,

किरनों से बतियाती तो है 


-आनन्द.पाठक-


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