अनुभूतियाँ 005 ok
017
सच ही कहा था तुमने उस दिन
" जा तो रही हूँ सजल नयन से"
छन्द छन्द बन कर उतरूँगी
गीत लिखोगे कभी लगन से। "
018
सुख-दुख का ताना-बाना है,
जीवन है रंगीन चदरिया ।
नयनो के जल से धोता हूँ,
हँसी खुशी यह कटे उमरिया।
019
जिसको सच हम समझ रहे थे ,
वह था केवल भरम हमारा।
भला किया जो तोड़ गई तुम
आभारी दिल, करम तुम्हारा ।
020
दीप भले हो और किसी का
ज्योति प्रीत की आती तो है।
पीड़ा मेरी चुपके चुपके ,
किरनों से बतियाती तो है
-आनन्द.पाठक-
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